उन दिनों गुजरात बदल रहा था भूकंम्प के बाद से गुजरात में सड़कों का जाल सा बिछ गया था। बिजली की आवग बढ़ गयी थी। सिचाई की व्यवस्था खूब थी। नए नए पर्यटन की संभावनाएं तलाशी जा रही थी नित पुरानी कलाओं को सवारा जा रहा था। पहले समस्या यह थी की गुजरात कोई टूरिस्ट आता जाता नहीं था। तो कला के कद्रदान बह बहुत सिमित थे। अब समय बदल रहा था। यही सही मौका था।
इन्ही दिनों के बीच एक पक्के गुज्जू लड़के और ऋतू की प्रेम कहानी कॉलेज की दीवारें लाँघ केर एक दिन पहुच जाती हैं सुदूर कच्छ गुजरात के नीरोना गाँव की ओर जन्हाँ उन्होंने रोगन आर्ट को देखा
इसी चनिया चोली , काठी की एम्ब्रोडरी वाले सूट, बांधनी वाला दुप्पटा, पटोला वाली चूनरी, जरी के काम वाले रुमाल और तांगलिया सूट के रंगों के बीच मगनलाल थाकोरदास बालमुकुंद दास आर्ट कॉलेज सूरत के स्टूडेंट जब पहुचे तत्कालीन गुजरात के मुखमंत्री नरेन्द्र भाई के पास अपनी रोगन कला लेकर पहुचे तो वो बोले :-
शाबाश
।रोगन कला को दुनियां के कोने कोने में ले जायेंगे भगवन ने चाहा तो आपका नाम दुनियां में होगा।इस कला को एक दिन पूरी दुनिया सराहेगी पर तू सही गुजराती दिमाग है तो दो पैसा तू भी कमायेगा।
समय आगे बढ़ता गया। ऋतू और मनसुख उर्फ़ निवेटिया की शादी हो गयी। उनका सूरत में एक्सपोर्ट - इम्पोर्ट में बहुत बड़ा नाम था।
२०१४ में जब प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदरदास ने यु एस वाइट हाउस विजिट की थी तो उन्होंने प्रेजिडेंट ओबामा को दो रोगन पेटिंग भेट की थी। उसमे एक ट्री ऑफ़ लाइफ भी थी। जिसको राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित पदुम भूषण अब्दुर गफूर खत्री ने बनाया था।
कहानी अंश : कुछ कही कुछ सुनी सी
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