इंदिरा जी
को अपने आस पास वो ही लोग पसंद थे जो उनसे ज्यादा जानकर हों. वह ये मान कर चलती थी कि वह चाहे जिस भी विषय पर बोले सामने वाला उसके बारे में सब कुछ जनता होगा. इसीलिए शायद इंदिरा जी को मेरी आदत लग चुकी थी. रोज़ रोज़ के बवाल पचड़े . इस इमरजेंसी
ने सब कुछ फीका फीका सा कर दिया था. सुरवा को हसीना फैमिली से कुछ ज्यादा ही लगाव था. फिर वह हमारी स्पेशल गेस्ट भी थी. इंदिरा जी ने उस दिन खुद ही बोला था प्रणव - बंगाली भद्र पुरुष
होने के नाते आपकी भी जिमेदारी है शेख परिवार. हसीना और सुरवा
(मेरी अर्धांग्नी -धर्म पत्नी) दोनों को संगीत में सामान रूचि थी. अक्सर हम लोग छुट्टियों में पिकनिक पर दिल्ली में ही आस पास निकल जाया करते थे. वैसे तो उस परिवार पर खतरा हमेशा मड़राता था और आर एंड डब्लू की इनपुट्स भी थी पर भद्रो बोंगली मानुष. इतनी आसानी से न मनबो.....................
इमरजेंसी वाला इतिहास
इतिहास के अनहोने मोड़ पर एक अनचाहा मेहमान और खातिरदारी। वो इतिहास जो लिखा नहीं जाता।
"कुछ कही - कुछ सुनी सी" - एक कहानी कोश - एक किताब से साभार
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