इंदिरा जी को अपने आस पास वो ही लोग पसंद थे जो उनसे ज्यादा जानकर हों . वह ये मान कर चलती थी कि वह चाहे जिस भी विषय पर बोले सामने वाला उसके बारे में सब कुछ जनता होगा . इसीलिए शायद इंदिरा जी को मेरी आदत लग चुकी थी . रोज़ रोज़ के बवाल पचड़े . इस इमरजेंसी ने सब कुछ फीका फीका सा कर दिया था . सुरवा को हसीना फैमिली से कुछ ज्यादा ही लगाव था . फिर वह हमारी स्पेशल गेस्ट भी थी . इंदिरा जी ने उस दिन खुद ही बोला था प्रणव - बंगाली भद्र पुरुष होने के नाते आपकी भी जिमेदारी है शेख परिवार . हसीना और सुरवा ( मेरी अर्धांग्नी - धर्म पत्नी ) दोनों को संगीत में सामान रूचि थी . अक्सर हम लोग छुट्टियों में पिकनिक पर दिल्ली में ही आस पास निकल जाया करते थे . वैसे तो उस परिवार पर खतरा हमेशा मड़राता था और आर एंड डब्लू की इनपुट्स भी थी पर भद्रो बोंगली मानुष . इतनी आसानी से न मनबो ..................... इमरजेंसी वाला इतिहास ...
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कुछ कही - कुछ सुनी सी कहानियां हमेशा से कुछ कही और कुछ सुनी सी होती है। क्योकि कहानियां हमारे आपके हम सब के बीच में ही रहती हैं। कहते हैं हर एक के पास एक कहानी तो होती ही है जिसे वह लोगो से साझा कर सके। किस्सागोई बचपन में माँ की कहानियों से शुरू होती है और दोस्तों , पास पड़ोस के लोगो से होते हुए स्कूल , कॉलेज के गलियारों से होती हुई , बस और ट्रैन से सफर करती हुई , पानी में तैर कर , हवाओं के उड़ कर खुश्बू सी फ़ैल जाती है। मेरे पास भी कुछ कहानियां है। कुछ मेरी अपनी। कुछ अपने आप से निकली , कुछ इतिहास से उड़ाई , कुछ पड़ोस से उधार ली हुई , कुछ खुद ही कहानियों में से निकली हुई । बचपन से ही पढने का शौक था तो जो मिला पढ़ डाला। बाबा के रिटायरमेंट पर मिले सुख सागर , बाल्मीकि रामायण , घर पर रखी पुरानी होम साइंस की किताबे , कामसूत्र , तोता मैना की कहानियां , खुशवंत सिंह से लेकर मस्त राम तक, जो मिला सब पढ़ डाला। हिस्ट्री , साइंस फिक्शन , एरोटिक , थ्रिलर से लेकर चेतन भगत तक। फिर लिखना शुरू किया। एक कहानी लिखी बोर हो गया तो दूसरी लिखी फिर तीसरी। कुल पचासों क...