Out of Menu Dishes of Chandni Chowk, Delhi
The insider’s guide to eating out in Old Delhi
In Delhi, death and drink make life worth living,” ― Khushwant Singh, Delhi
दिन दहाड़े डकैती का भी पहला अनुभव मुझे चाँदनी चौक मे ही हुआ था| सावन का महीना था| सामने से गले मे अजगर लपेटे साधु बाबा लोगो का गेंग आ रहा था! मेरी आँखो से वो समझ गये कि मुझे साँप से कितना डर लगता है, बोले बेटा साधु को अमरनाथ दर्शन करने जाना है, जेब मे जो कुछ भी है सब दे दे वरना अजगर बाबा नाराज़ हो जाएँगे! मेरे मुह से कोई आवाज़ नही निकल पा रही थी| मेरी नज़र सिर्फ़ अजगर पर थी जो मेरी ओर हिस्स हिस्स कर रहे थे और विश्वास करो मैने अपने सारी जेबों से चिल्लर तक निकल के दे दी! बाबा बोला जा बच्चे तेरा भला होगा! भला हो बाबा का रास्ते मे कोई टिकेट चेकरर नही आया वरना बिना टिकेट पकड़ा जाता! रेल मे टिकेट लेने के पैसे भी नही बचे थे!
वो ७५ रुपये मे खरीदा ओरिजिनल रे बेन का चस्मा और और १५०० का यासिका कैमरा आज भी याद है| भाई साब हम देल्ही घूमने आए थे और अजमेर जाना है| मेरी जेब कॅट गयी है| पैसे नही है | बस कैमरा है यासिका का| मेड इन जापान | 5 हज़ार का लिया था| आप ले लो| तभी पीछे से २ बंदे और आते हैं| वाह भाई ओरिजिनल यासिका है, मेड इन जापान, सुनो अभी किसी को मत बेचना, हम बस १० मिनिट मे आए, पैसे ले के| ऐसी ओरिजिनल चीज़ कहा मिलती है! वो गये और मैने तपाक से १५०० रुपये दे मारे और मन को तसल्ली थी की किसी ज़रूरतमंद की मदद की है! वो तो जब नटराज के दही भल्ले खा के जब मैं लौटा तो तीनो को एक साथ फलों की चाट खाते देखा! तब मैं समझा की भाई चाँदनी चौक की चुधराहट| इसको चाँदनी चौक की भाषा मे बोलते हैं की जेब कटी नही फट गयी |
लाल किले के ठीक सामने चौराहे पर फलो की चाट की दुकान है | याद कर के आज भी मुँह मे पानी आ जाता है| मक्खियों के बीच मे वो फलो का भरा प्लेट |यम्मी | शीश गंज गुरुद्वारे के ठीक सामने रोड के उस पार एक ठेले वाला मुंग की कचौड़ी मूली के छल्लो के साथ देता था | ईमली वाली चटनी के साथ | ह्यूम्म्म्म्म | वाह क्या स्वाद था आज तक उसका तोड़ नही मिला | रामलीला के दिनो मे राम जी की झाँकी रोज़ निकलती थी | जेब पे ज़रा सा ध्यान हटा और गयी|
एक दिन नटराज दही भल्ला वाले की दुकान पर मैं दही भल्ले खा रहा था | भाई एक बात मैं बता दूं चाँदनी चौक मेन रोड पर नटराज दही भल्ले वाला दुनियाँ के सबसे शानदार दही भल्ले बनाता है | लोग कुत्ते की तरह भीड़ लगाए रहते है उसकी दुकान पर | सिर्फ़ दो चीज़ बनता है दही भल्ले और आलू टिक्की | करारी टिक्कियाँ | दो तरह की चटनी | हरी वाली और ईमली की और भल्ले मे वाह मीठी वाली दही | तो मैं वहाँ भल्ले खा रहा था की अचानक वहाँ स्कूल ड्रेस मे दो कूम उम्र की लड़कियाँ आई और बोली सर स्कूल के लिए चंदा लेना है | भाई साहब उनकी मिनी स्कर्ट मे जो जांघे दिख रही थी वो तो कुछ और ही बता रही थी | जब ५ रुपये वापिस करके उसने १०० रुपये माँगे तो जाने कहाँ कहाँ हाथ लगा गयी | मैने २०० दिए | तब एक दही भल्ले वाले पाप के समान भागीदार ने क्लियर किया की साली रंडी हैं दोनो | रोज़ का यही काम है | स्कूल की स्टूडेंट बन के लोगो को ठगती है उस दिन चाँदनी चौक का एक नया ज्ञान प्राप्त हुआ |
शीसगंज गुरुद्वारे के नॉर्थ मे एक पुरानी मिठाई की दुकान है ना भाई साहब क्या शानदार रशभरी जलेबिया बनता है ,कसम से,पतली पतली और बड़ी बड़ी, कुरकुरी और मुलायम,पूरे शुद्द देसी घी मे सिकी | वाह क्या स्वाद होता था उनका | शूध देसी घी मे तो चीना राम सिंधी मिठाई वाला भी बनता है पर उसका असली मज़ा तो उसके कराची हलूवे मे ही है, आहा, चबाते रहो,बस खाते जाओ, पतिशा, डोडा बरफी, मोटी पाक और बड़े वाले लड्डू, सब एक से एक | थोड़ा सुबह सुबह जल्दी आ जाओ तो हलवा पूरी और आलू सब्जी का नाश्ता भी मिलता था हाँ अगर हलवा - नागोरी खाना है तो शिव मिस्तान भंडार की तरफ बढ़ना पड़ेगा | आहा दुनियाँ की सबसे अच्छी पूरी, उरद की दाल भर के करारी तली हुई ,सुबह सुबह आ जाओ तो काजू पिस्ता डाल के बना आधा घी मे तैरता शानदार हलुवा | आलू की सब्जी और कुरकुरी कचोरी |
थोड़ा आगे बढ़ जाओ तो चाँदनी चौक के आख़िरी मे है पराठे वाली गली , तंग गली- छोटी छोटी हुट्टियाँ पर पंडित कन्हैयालाल दुर्गा प्रसाद पराठे वाले दा जवाब नही है जी | अलग अलग जयकेदार भरवन | मटर, मूली, गाजर, पनीर, लहसून, टमाटर, राबरी, आप जिस चीज़ का नाम लो हाज़िर है!लाजवाब|
अब आख़िरी मे चावडी बाज़ार के सीताराम मार्केट मे सन 1908 की कुरेमल मोहनलाल कुलफी वाले की कुलफी खाए बिना अगर वापिस आ गये तो चाँदनी चौक नही देखा | केसर-पिस्ता, रबरी और क्रीम साथ ही फलो वाली कुलफी, ऑरेंज, कस्टर्ड एप्पल, चिकू, पोमेग्रनेट, मॅंगो, रोज़ , टॅम्रिंड | इनमे फ्रूट जूस मे फ्रूट पल्प के साथ कुलफी का स्वाद लाजवाब है |
मेरा तो मानना है की दुनिया मे दो तरह के लोग हैं एक जिन्होने लाहौर ना देखयो दूसरे जिन चाँदनी चौक ना देखयो | लोग चाँद पर पहुच गये और हम आज भी अपना बुग्गी झोटा लिए घूम रहे हैं उसपे तुर्रा ये की हमारी वाली ही बेस्ट है पर भाई वो कहते हैं ना :-
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