ताकि ग़ायब न हो जाए गौरैया....

ताकि ग़ायब न हो जाए गौरैया....

गौरैया, चिड़िया, मुहिम, दिलावर
कभी दिन गौरैया की चहचहाहट से खुलता था. लेकिन धीरे-धीरे ये नन्ही चिड़िया हमारे आसपड़ोस से ग़ायब होती चली गई.
न पेड़ बचे और न उन पर निर्भर छोटे-छोटे पक्षी. अब गौरैया भारत का सबसे संकटग्रस्त पक्षी है.
उन्हीं में से एक हैं महाराष्ट्र के नासिक के मोहम्मद दिलावर. मोहम्मद दिलावर पर्यावरण विज्ञानी हैं और लम्बे समय से बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी से जुड़े हुए हैं.गौरैया की कमी तो सबने महसूस की है लेकिन गौरैया को बचाने के लिए बहुत कम लोग आगे आए हैं.
मोहम्मद दिलावर ने साल 2008 में गौरैया को बचाने की मुहिम शुरू की. वे नासिक में रहते हैं लेकिन गौरेया को बचाने की उनकी मुहिम अब 50 देशों तक पहुंच गई है.
इस मुहिम का सीधा उद्देश्य है, गौरेया को उतनी गंभीरता से लेना, जिसकी वे हक़दार हैं.
दिलावर ने इसके लिए इंटरनेट पर कई पहल की हैं, ज्यादातर उन लोगों के बूते जो गौरेया से प्यार करते हैं.

कीटनाशक, गौरैया, चिड़िया, पड़ोस, मोहम्मद दिलावर
मोहम्मद दिलावर का मानना है कि गौरैया के बारे में लोगों को जागरुक करना ज़रूरी है.
लकड़ी के बुरादे और कचरे से दिलावर ने गौरेया के लिए छोटे-छोटे घर बनाए हैं और एक फ़ीडर भी, जिससे गौरेया को सुरक्षित खाना मिल सके.

प्रदूषण की ओर इशारा

मोहम्मद दिलावर कहते हैं, "गौरैया का कम होना एक तरह का इशारा है कि हमारी आबोहवा, हमारे भोजन और हमारी ज़मीन में कितना प्रदूषण फैल गया है. कीटनाशकों का पक्षियों पर क्या असर है, इस बारे में हम ग्रामीण इलाक़ों में मोरों के मरने की ख़बरें तो पढ़ते हैं लेकिन गौरेया कभी भी ऐसी बड़ी ख़बर नहीं बन पाती."
पक्षी प्रेमियों को जोड़ने के लिए मोहम्मद दिलावर की संस्था नैचर फ़ोरेवर ने इंटरनेट पर एक दिलचस्प पहल शुरू की है, जहां लोगों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाता है कि वे अपने आसपास के परिंदों का रिकॉर्ड रखें और उनकी वेबसाइट - कॉमन बर्ड मॉनिटरिंग ऑफ़ इंडिया- पर साझा करें.
मोहम्मद दिलावर बताते हैं, "अमेरिका या अन्य विकसित देशों की तरह हमारे यहां इन पक्षियों का ब्यौरा रखा नहीं जाता. लेकिन पर्यावरण के लिए वे अहम हैं. इसलिए इसकी शुरूआत की गई है."
"कीटनाशकों का पक्षियों पर क्या असर है, इस बारे में हम ग्रामीण इलाकों में मोरों के मरने की खबरें तो पढ़ते हैं लेकिन गौरेया कभी भी ऐसी बड़ी ख़बर नहीं बन पाती."
मोहम्मद दिलावर, पर्यावरण विज्ञानी
इस वेबसाइट पर लोग इस्तेमाल की जा चुकी दूरबीनों से लेकर गौरैया और दूसरे पक्षियों की तस्वीरें और कहानी-कविताएं भी साझा करते हैं.
पक्षी प्रेमियों की एक कम्युनिटी इस पहल के ज़रिए खड़ी हो गई है. दिलावर की मंशा है कि इस पहल को गतिविधियों के ज़रिए स्कूल स्तर तक ले जाया जाए.
लोगों में ये जागरूकता लाना ज़रूरी है कि गौरैया और दूसरे आम पक्षी हमारे पर्यावरण का अहम हिस्सा हैं.
पिछले चार साल से उनकी संस्था 'स्पैरो अवार्ड्स' भी देती है. ये अवॉर्ड उन लोगों को दिया जाता है जो भले ही पर्यावरण को बचाने के लिए पूर्णकालिक काम नहीं करते लेकिन उस में किसी न किसी रूप में योगदान देते है.
दिलावर ने लोगों में जागरुकता फैलाने के लिए विश्व गौरेया दिवस की शुरूआत भी की है.

Comments

Popular posts from this blog

SEX and the Indian Temples

Different Folk Songs of Assam

Piya Se Naina:Amir Khusro - A journey of different moods