मुज़फ़्फ़र नगर!!!
मेरा नाम नेइमा है! मैं दूसरी क्लास मे पढ़ती हूँ!मेरे स्कूल का नाम बॉल जीवन ज्योति स्कूल है!मैं अपने मम्मी पिताजी के साथ रहती हूँ!मेरे भाई का नाम रफ़ी है!मेरे पिताजी कपड़े इस्त्री करने का काम करते हैं!मैं अपने मम्मी पिताजी को बहुत प्यार करती हूँ!मुझे सलमान ख़ान और अमिता बच्चन के गाने बहुत अच्छे लगते हैं! बल्लू बता रहा था कि रईस को सुनील और सुभाष ने मारा फिर सुभाष और सुनील को गाँव वालो ने मारा! कल पता नही किसने मेरे मम्मी-पिताजी को मार दिया! रफ़ी भी मर गया! मेरी फोटो अख़बार मे आई थी! दो दिनो से मैं ताया के साथ सरकारी स्कूल मे हूँ! बाहर बहुत सिपाही हैं!खेलने भी नही देते ! पता नही क्यों?


भूखे को कई दिनो बाद …कड़ी मशक्कत के जब हुई …मयस्सर …एक रोटी और उसके दो दिन से सूखे ............ हलक से एक टूटी सी आवाज़ फूटी भारत माता की जय....१५ अगस्त रोज नही हो सकता क्या?


नमस्कार!६७वे स्वतंत्रता दिवस की आपको बहुत बहुत शुभकामनाएँ! अस्सी के दशक मे जब कुछ कुछ समझ आने लगी तो गाँव मे प्रधानी के चुनाव होते थे! पिछले ३ कार्यकाल से जो प्रधान थे वो थे लाला! गाँव तो हमारा था कुर्मी बाहुल्य और चमार भी बहुत थे! पर बड़े आदमी लाला लोग ही थे! लाला माने श्रीवास्तवा लोग! ज़मीन ज़्यादा हमारे पास थी! गाँव की गंदगी से दूर हम लोग रहते थे खलिहान के पास! लाइन से बड़ी बड़ी कोठियाँ थी हमारी और हमारे पाटीदार लोगो की! प्रधानी भी हमारे ही पास थी! बगल का एक छोटा गाँव था ठाकुर बाहुल्या! वहाँ से भी सिंग साहब चुनाव लड़ते थे! पर वोट ज़्यादा हमारे गाँव की थी तो जीतते थे हमारे लाला! अच्छा गाँव के कम से कम ८०-९० लोग ऐसे थे या कह लो ८०-९० गुना ६ वोट ऐसे थे जिनके घर के एक ना एक आदमी की नौकरी हमारे पिता जी ने लगवाई थी चीनी मिल मे!पहले चीनी मिल मे लेबर कम पड़ती थी तो पिता जी गाँव से हर साल ६-८ लोग ले जाते थे काम करने और वो नौकरी पर लग जाते थे! पिता जी यूनियन लीडर भी थे! बहुत दमदार और चलता पुर्जा! तो भाई कम से कम ५०० वोट तो हमारी खरीदी हुई थी! तो जीतते कोन ? हमारे लाला! और भाइय्या चुनाव मे वादा क्या होता था ? बिल्कुल सक्चा वाला कि जीतते ही गाँव मे एक स्कूल बनेगा! और कस्बे को गाँव से जोड़ती जो सड़क थी मरी हुई सी उस पर हमारे घर के ठीक सामने यादव लोगो का कुँवा पड़ता था! सच भाई सड़क पर कुँवा! अब माजिसट्रॅट आते या पूलिस पर भाय्या यादव जी कुँवा नही भरने देते थे! पुरखो की निशानी जो था!वैसे हमारी गाएँ और बैल भी वही बाँधते थे! तो वो सड़क कस्बे से आती और कुँवा पर मर जाती थी! हां हमारे बगल वाले गाँवो के लिए फिर से चमेरटोली के बाद से आश्चर्या जनक रूप से जिंदा हो जाती! ये सड़क भी चुनाव का एक मुद्दा थी! वादे होते, फिर चुनाव होते और फिर लाला जीत जाते! फिर पड़ोस गाँव वाले बाबू साहब को भी बुलाया जाता और लगे हाथ स्कूल की नीव पर फावड़ा चलता! फावड़ा बाबू साहब सबसे पहले चलाते !लाल बहादुर शास्त्री प्राथमिक स्कूल! भूल गये लाला लोगो का गाँव जो था!और शास्त्री जी नाम के शास्त्री थे पर थे वो लाला! वो बोर्ड बाद मे हमारी छत पर रखा रहता था! जंग लग जाती थी! कभी कभी हम लोग उसे आचार वगेरा छत पर फैलने मे प्रयोग करते थे!

अब साला टाइम बदल गया! आज़ादी के ६६ साल हो गये! प्रधानी अनुसूचित जाति मे चळी गयी है पिछले १५-२० साल से! गाँव मे सरकारी हाइ स्कूल खुल गया है! प्राइमरी हेअल्थ सेंटर और २ प्राइवेट स्कूल है! लाला लोगो के ग्रॅजुयेट बेरोज़गारो ने खोल रखे हैं! सिंग साहब शराब के बहुत बड़े व्यापारी हो गये थे और अब तो विधायक हैं!पक्की सड़क! हां भाई कुँवा तो कब का भर गया! यादव लोग चले गये बॅंकोक! वही कोई बीमारी हो गयी सब के सब ख़तम हो गये! शायद कुछेक है अभी वही !चामर अब भी चामर ही हैं पर अब घर ज़्यादा तर पुक्के हो चुके हैं! चीनी मिल मे जो नौकरी करते थे अब उनके लड़के लग गये हैं ! अगली पीढ़ी आ गयी है नौकरी करने ! हां लाला लोगो के परिवार या तो लकनाउ शिफ्ट हो चुके हैं या गोरखपुर! गाँव मे सिर्फ़ ४-५ घर बचे हैं! वो भी पास के क़ुस्बे मे रहते हैं रोज़ गाँव मे आ कर घर का ताला खोल कर देख लेते हैं फिर बंद कर देते हैं! हमारे घर मे सिर्फ़ बुढ़िया ताई जी बची हैं! भियया लोग तो मुंबई मे रहते हैं पर ताई जी ज़िद हैं अपने पुस्तैनि मकान मे रहने की तो वो अकेली ही रहती हैं कोठी मे! मैं चला जाता हूँ महीने - ४ महीने पर! साला तरक्की तो हुई है ६६ सालो मे सच मे!

Comments

Popular posts from this blog

SEX and the Indian Temples

Different Folk Songs of Assam

बाणभट्ट की आत्मकथा